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सोमवार, 29 अगस्त 2011

फिर सत्ता का मद चूर हुआ.

मेरा मन भी चिल्लाया,
अब क्या होगा?


सत्ता के मद में शायद, 
शाशक  भूलेगा लोकधर्म .

लोकतंत्र की हस्ती को मिटाने
शायद इक नई इंदिरा फिर आएगी .


शायद सत्ता गुर्राएगी.
शायद फिर आपात लगेगा.


पर मन में कुछ और चला ......


सत्ता के मद को आँख दिखाने,
क्या राज नारायण फिर आयेंगे ?


 सोते जन का मौन तोड़ने ,
क्या इक जेपी फिर से जन्मेगा ?

क्या लोकतंत्र की रक्षा को फिर,
जेल भरो आन्दोलन होगा ?


इतिहास स्वयं को दुहराता है .............

सोते जन को नीद जगाने,
सत्ता के मद को आँख दिखाने.

बेदाग़ छवि के अन्ना आये,
तन्द्रा टूटी, चिंता छूटी

फिर लोकतंत्र की रक्षा को,
सारी जनता उमड़ पड़ी .

फिर सत्ता का मद चूर हुआ. 
फिर सत्ता का मद चूर हुआ. 












शनिवार, 30 जुलाई 2011

भ्रष्टों से भारत चलता है
क्यूँ की गद्दी तो वही
सम्हालते हैं ,
कहने में तो लोगो को बहुत 
मजा आता है 
कि भ्रष्टाचार
ख़राब hai
देश को नष्ट करता है 
पर कोई भी साहस 
न जुटा सका 
खुद नेता बनने का साहस 
क्यूँ कि भ्रष्टों से भारत चलता है 





रविवार, 12 जून 2011

ham bharatya aaj bhee rail ke dibbe hain

 हम भारतीय आज भी रेल के डिब्बे ही हैं

एक लाइन थी जो मुझे आज बरबस याद आ गयी कि ‘हम भरतीय रेल के डिब्बे हैं‘।  यह लाइन आज के परिदृश्य में भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी तब थी। यह लाइन थी भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के एक निबन्ध की जिसे मैने 11वीं में पढ़ा था, नाम था ‘भारतवर्षोंन्नति कैसे हो‘। आजादी के पहले अंग्रेज हमारे लिए इंजन थे। आजादी की लड़ाई में लाठी हमारे लिए इंजन का काम करती रही। उसने हमे खींचा तब हम गुलामी से मुक्त हो सके।
चलो आजाद हो गए तो सोचा अब ‘बस‘ बन जाएंगे पर सोच गलत थी हम रेल के डिब्बे ही रह गए। ये अलग बात थी अब हमें कोई विदेशी इंजन नहीं खींच रहा था। फिर भी शर्म न आई। इमरजेंसी लगी, सारे अधिकारों पर ताला लगा। अब भी हम ‘लोकनायक‘ का इन्तजार करते रहे कि वे आएंगे और वे हमे खीचेंगे। खैर भला हो उनका उन्होने अपने नैतिक कर्तव्य को समझा आगे इंजन की तरह वे आगे लग गए और हम डिब्बे की तरह उनके पीछे लग लिए।
अब हम इस त्रासदी से भी मुक्त हो चुके थे, अब कहा जा सकता है कि नया दौर शुरू हो चुका था सोचा कि इस बार इनबिल्ट इंजन लगा लेंगे या हवाई जहाज हो जाएंगे, उड़ेंगे नीले गगन पे। यह विचार भी रद्दी के भाव बिक गया हम जहाज से तो जरूर उड़ने लगे पर हम अब भी अपनी बात कहने के लिए इसी प्रकार के इंजनो की तलाश में लगे रहे। पर अब तो ‘अन्ना‘ आ गए हमने उन्हे पकड़ लिया, पर स्वयं की प्रेरणा अन्ना के जगाने पर ही विकसित कर पाए। अब हमे अन्ना ढो रहे हैं, भ्रष्टाचार से लड़ रहे हैं। चलिए कम से कम से कम हममें निष्क्रियता तो नही आयी खींचे जाने पर आराम से चले जाते हैं। अभी पहियों में जंग तो नहीं लगी है, इसी से संतोष कर लिया जाए। क्या करें ? हम भारतीयों में संस्कृत की एक उक्ति प्रचलित हैए ‘संतोषं परम् सुखम‘ उसी से प्रेरणा लेते रहते हैं, संतोष कर लेते है। अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए कोई लाठी, कोई लोकनायक, कोई अन्ना तो ढॅूढ़ ही लेंगे पर खुद को तैयार न कर सकेंगे।
अब बाबा को भी इंजन बन हमें खींचना पड़ रहा है, काले धन पर वे अपना योग, ध्यान सब छोड़कर हमारे लिए इंजन बन गए हैं। खैर वो भी अपना कर्तव्य निभा देंगे और हम रेल के डिब्बों की तरह उनके पीछे लग लेंगे। हम अपने लिए न लड़ सकेंगे पर किसी के पीछे चल लेंगे। दूसरे का इंतजार करते रहेंगे कि कोई आएगा और हमारे अधिकारों के लिए लड़ेगा। भारतेन्दु ठीक कहते है हमसे तो इस मामले मे अंग्रेज ही बेहतर हैं वो कम से कम अपने लिए तो लड़ ही लेते हैं। हमारी तरह पिछलग्गू तो नहीं हैं।हम वाकई में डिब्बा बन कर रह गए हैं।

               

शुक्रवार, 3 जून 2011

फटीचर हिंदी - मेरी कलम की बगावत

फटीचर हिंदी & मेरी कलम की बगावत
मेरी कलम उठ गयी, वह दौड़ने लगी जैसे टॉम को देखकर जेरी भागता है। न जाने कहॉ से मेरे दिमाग में फटीचर हिन्दी लेखन का भाव जाग गया। वास्तव में मै अच्छी व रौबदार हिन्दी लिखने का प्रयास कर रहा था। मेरी कलम ने विद्रोह का बिगुल बजा दिया। जैसे घर के संस्कारों के बोझ तले दबे युवा अक्सर ऐसा करते हैं। मेरे दिमाग ने भी उसका साथ दिया। मेरी हालत मोरारजी देसाई जैसी हो गयी जब मंत्रिमंडल के ही सदस्य सरकार को अस्थिर करने लगे या आप यॅू कह सकते हैं कि मै उस समय अमर सिंह जैसा हो गया जो अब न किसी घर का है न ही किसी घाट का है। सो मैने कलम और दिमाग के सामने मुक्ति संग्राम में हारी हुयी पाकिस्तानी सेना की तरह आत्म समर्पण करना ज्यादा उचित समझा।
मै रौबदार हिंदी जिसे हम साहित्यिक भी कहते हैं, का ऐसा भक्त बन गया था कि मुझे इसके अलावा कुछ नजर ही नहीं आ रहा था। परिणाम स्वरुप मैं हिन्दी के भारी भरकम साहित्य का अध्ययन करने लगा। मैने न जाने कितने पहुॅचे साहित्यकारों को अपना मार्ग दर्शक बना बैठा था। वो तो ऊपर से मजा ले रहे थे। मैं उनका अनुयायी बनकर उनके द्वारा बुने गये समीकरणों में फॅसता जा रहा था। मेरी कलम मेरा सामंती रवैया बर्दाश्त न कर सकी। दिमाग भी भारी भरकम साहित्य के सामने तराजू के दस ग्राम के बाट की तरह था। मेरा दिमाग तो मेरी इस अन्ध भक्ति से ऊब चुका था। मेरे डर से कुछ बोलने का साहस न कर पाता था, सो उसने अंग्रेजों की तरह इन्तजार करना उचित समझा। मौका आने पर उसने भी चौका मारे में देरी नहीं की। मुझे सम्हलने का मौका तक न मिला।
मुझे गुस्सा भी बहुत आया पर मैने मनमोहन सिंह की तरह अपनी गलती स्वीकार कर सहानुभूति की लहर पैदा करने की कोशिश भी की पर मेरी कलम मेरी रौबदार हिंदी की कब्र खद चुकी थी। मैने समझौता कर मजार बना दी। अब शरीया को यह मंजूर न था, उसने मुझे काफिर घोषित करा दिया। मैं तो डर गया मैने कलम के ही खेमे में अपना भविष्य सुरक्षित समझा। मैं अवसरवादी नहीं था। मैं मजबूर था। इसके बाद मेरे शरीर के सभी अंगों ने मेरे इस फैसले पर जश्न मनाया।
लेकिन मुझे मेरी गलती का अहसास हुआ। अब मेरा नया जीवन शुरु हो रहा था। अब मैं रौबदार हिंदी की रौब नहीं सुनूॅगा। वैसे तो मैं सूफी सन्तों की ही तरह था। फटीचरी में तो हम एक्सपर्ट थे किन्तु रौबदार हिंदी की गुलामी ने तो वेश भूषा भी बदल दी थी। मै भी अंग्रेजों के गुलाम भारतीयों की तरह सूट-बूट-टाई में आ गया था। रौबदार हिंदी का सारा वनज मेरी टाई पर था जो मुझे झुकाये जा रहा था। यह बात मुझे देर से समझ आई कि यह राजसी हिंदी मेरे लिये नहीं बनी हैे। इसके लिये मै अपनी कलम का आभारी भी हॅू।
इस घटना के बाद तो मेरा दिल कुलॉचे मार कर कूद रहा था। उसके लिये तो यह खुशी तो 15 अगस्त 1947 जैसी थी। वह खुश था कि अब वह फ्लर्ट भी कर सकता था। अब उसे प्रियतम और सखे कहकर पुरानी हिंदी फिल्मों की तरह डायलॉग नहीं मारना पड़ेगाए न ही उसे अब स्लोमोशन मेें पुराने हिंदी गानों पर स्लोमोशन नृत्य करना पड़ेगा। अब वह पॉप कल्चर को अपना गुरू बना चुका है। अब उसके पास डार्लिंग और जानू जैसे शब्द हैं। अब वह अपनी प्रियतम को मुन्नी-शीला कहकर चिढ़ा सकता था। अब वह देवदास नहीं था अब वह रेमो बन चुका था। अब मेरा मन भी मेरे दिल के साथ टहलने जा सकता था। अब वह इस संसार के सारे मजे लूट सकता था जो वह अब तक न लूट सका था।
जो लक्षमण रेखा इन तथाकथित रौबदार शासकों ने खींची थी अब मै उसे लॉघ चुका था। मैं मैकाले की शिक्षा के जाल में फॅसा था जिसके कारण मैं इन रौबदरियों का मुंशी बन गया था। आज मेरी कलम ने मझे आत्म बोध कराया था। उसने मुझे इस गुलामी से मुक्त कराया। मुझे रौबदार संप्रदाय में जाने से रोका। मेरे शरीर में भारत की तरह लोकतंत्र की स्थापना करायी। अब मैं फटीचर हिंदी में अपना भविष्य सुरक्षित कर सकूॅगा।

रविवार, 27 मार्च 2011

हारना मना है

भारत पाकिस्तान के बीच सेमी फ़ाइनल  का मैच बुधवार को मोहाली में खेला जाने वाला है , प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को निमंत्रण भेजा है , जरदारी व गिलानी ने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया है , भारत पाकिस्तान के बीच वार्ता का दौर शुरू करने के लिए देश के कूटनीतिज्ञों ने क्रिकेट नीति का उपयोग शुरू कर दिया है , यह कितना सफल रहेगा यह तो वक्त ही बताएगा, मैच में अब और रोमांच बढ़ जायेगा , मेरे ख्याल से मैच जोश से भरा होगा , शोर भी होगा , टेंशन भी होगा , हारना मना है यह तो दोनों टीमो को पता है , बहुत दिनों के बाद दोनों के बीच कोई मच हो रहा है, धोनी ने भी कमर कासी है तो अफरीदी भी घायल शेर की तरह हमला करने को बेकरार है, पुराना बदला जो चुकाना है, सभी फॉर्म में है  यह और भी रोमांचकारी हो जाता है. अब देखना यह है कि अंजाम क्या होता है , दोस्ती कि पटरी  से उतरी गाड़ी फिर से दौड़ती है या नहीं , या फिर पाटीदारों की किच किच  शुरू हो जाएगी , अरे भाई भारत और पाकिस्तान तो पटीदार ही तो हैं बटवारे से जो निकले है, जो भी हो यह जरूरी है, अटल जी की बात दोस्त बदले जा सकते है पड़ोसी नहीं. पड़ोसी से प्यार से रहिये वह आपको काट खाएगा भारत पाकिस्तान में तो यही देखने को मिलेगा , लेकिन पाकिस्तान ने एक भारतीय कैदी जो २७ साल से वहां बंद है को छोड़ने वाला है यह अच्छी पहल है , देखिये की क्या होता है और मुझे भी बताइए ...............  









देश का प्रधान मौन है .

अमेरिका की पिछलग्गू सरकार
कैसे रोकेगी भ्रस्टाचार
प्रधानमंत्री  कहते  हैं 
मैं कमजोर हूँ 
बेईमान नहीं , 
जितना आप समझते  हैं.
यह गठबंधन की मजबूरी है
पर मेरी भूमिका जरूरी है
यह कुर्सी का ही तो लालच है
सी वी सी नाकारा है फिर भी वह हमारा है 
कॉमन वेल्थ की लूट है 
जनता के कान में खूट है 
सारे आदर्श धरे रह गए 
अब 2G स्पेक्ट्रम में छूट है 
अभी सिलसिला आगे चलेगा 
क्यों की S बैंडकी बारी है  
यह तो गलती से हो गया 
फिर भी जनता हमारी है 
हम सबकी प्यारी है 
 फिर से हमको वोट देगी 
हम उसको नोट देंगे 
यह देश का सौभाग्य है 
पर मेरा दुर्भाग्य है 
मैं तो अंकुश हूँ 
हर गलत चीज पर लगता हूँ 
पर अब तो गणबणझाला है 
अब देश का दिवाला है 
राम बचाए देश को    
 देश का प्रधान मौन है .